आज खुले यमुनोत्री धाम के कपाट, जानिए यमुना धाम की महिमा

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चार धाम यात्रा के प्रथम तीर्थ यमुनोत्री धाम के कपाट आज दोपहर शुभ मुहूर्त में 12 बजकर 41 मिनट पर खोल दिए जाएंगे। मां यमुना के मायके खरसाली गांव में छह माह के शीतकालीन प्रवास के बाद आज उनकी डोली यमुनोत्री धाम के लिए रवाना होगी। तीर्थपुरोहितों ने शनिवार को खरसाली गांव स्थित यमुना मंदिर और शनि देव मंदिर में सजावट की। साथ ही विशेष पूजा-अर्चना और कीर्तन किया। वहीं, यमुनोत्री धाम में भी मां यमुना के स्वागत के लिए मंदिर का रंग-रोगन कर साज-सज्जा की गई। कोरोना संक्रमण की आशंका के मद्देनजर लॉकडाउन की पाबंदियों के चलते इस बार केवल 21 ही तीर्थ पुरोहित कपाटोद्घाटन में शामिल हो सकेंगे। ओर लॉकडाउन की पाबंदियों के चलते फिलहाल किसी भी श्रद्धालु को धाम में आने की अनुमति नहीं है। मंदिर समिति के सचिव कृत्तेश्वर उनियाल के अनुसार मंदिर में चुनिंदा पुजारी ही नियमित रूप से पूजा-अर्चना करेंगे

यमुना जी का वर्णन
पौराणिक गाथा के अनुसार यह असित मुनी का निवास था। वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। भूकम्प से एक बार इसका विध्वंस हो चुका है, जिसका पुर्ननिर्माण कराया गया। यमुनोत्तरी तीर्थ, उत्तरकाशी जिले की राजगढी(बड़कोट) तहसील में ॠषिकेश से251किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा उत्तरकाशी से131किलोमीटरपश्चिम -उत्तर में 3185मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।यह तीर्थ यमुनोत्तरी हिमनद से5मील नीचे दो वेगवती जलधाराओं के मध्य एक कठोर शैल पर है।यहाँ पर प्रकृति का अद्भुत आश्चर्य तप्त जल धाराओं का चट्टान से भभकते हुए “ओम् सदृश “ध्वनि के साथ नि:स्तरण है।तलहटी में दो शिलाओं के बीच जहाँ गरम जल का स्रोत है,वहीं पर एक संकरे स्थान में यमुनाजी का मन्दिर है।वस्तुतः शीतोष्ण जल का मिलन स्थल ही यमुनोत्तरी है।(यमुनोत्तरी का मार्ग) हनुमान चट्टी (2400मीटर)यमुनोत्तरी तीर्थ जाने का अंतिम मोटर अड्डा है।इसके बाद नारद चट्टी,फूल चट्टी व जानकी चट्टी से होकर यमुनोत्तरी तक पैदल मार्ग है।इन चट्टीयों में महत्वपूर्ण जानकी चट्टी है,क्योंकि अधिकतर यात्री रात्रि विश्राम का अच्छा प्रबंध होने से रात्रि विश्राम यहीं करते हैं।कुछ लोग इसे सीता के नाम से जानकी चट्टी मानते हैं,लेकिन ऐसा नहीं है।1946में एक धार्मिक महिला जानकी देवी ने बीफ गाँव में यमुना के दायें तट पर विशाल धर्मशाला बनवाई थी,और फिर उनकी याद में बीफ गाँव जानकी चट्टी के नाम से प्रसिद्ध हो गया।यहीं गाँव में नारायण भगवान का मन्दिर है।पहले हनुमान चट्टी से यमुनोत्तरी तक का मार्ग पगडंडी के रूप में बहुत डरावना था,जिसके सुधार के लिए खरसाली से यमुनोत्तरी तक की 4मील लम्बी सड़क बनाने के लिए दिल्ली के सेठ चांदमल ने महाराजा नरेन्द्रशाह के समय50000रुपए दिए।पैदल यात्रा पथ के समय गंगोत्री से हर्षिल होते हुए एक “छाया पथ “भी यमुनोत्तरी आता था।यमुनोत्तरी से कुछ पहले भैंरोघाटी की स्थिति है।जहाँ भैंरो का मन्दिर है।अनेक पुराणों में यमुना तट पर हुए यज्ञों का तथा कूर्मपुराण(39/9_13)में यमुनोत्तरी महात्म्य का वर्णन है।केदारखण्ड(9/1-10)में यमुना के अवतरण का विशेष उल्लेख है।इसे सूर्यपुत्री,यम सहोदरा और गंगा- यमुना को वैमातृक बहने कहा गया है।ब्रह्मांड पुराण में यमुनोत्तरी को”यमुना प्रभव”तीर्थ कहा गया है।ॠग्वेद (7/8/19)मे यमुना का उल्लेख है।महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा में आए तो वे पहले यमुनोत्तरी,तब गंगोत्री फिर केदारनाथ-बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे,तभी से उत्तराखंड की यात्रा वामावर्त की जाती है।हेमचन्द्र ने अपने “काव्यानुशान “मे कालिन्द्रे पर्वत का उल्लेख किया है,जिसे कालिन्दिनी(यमुना) के स्रोत प्रदेश की श्रेणी माना जाता है।डबराल का मत है कि कुलिन्द जन की भूमि संभवतः कालिन्दिनी के स्रोत प्रदेश में थी।अतः आज का यमुना पार्वत्य उपत्यका का क्षेत्र, जो रंवाई,जौनपुर जौनसार नामों से जाना जाता है,प्राचीनकाल में कुणिन्द जनपद था।”महामयूरी”ग्रंथ के अनुसार यमुना के स्रोत प्रदेश में दुर्योधन यक्ष का अधिकार था।उसका प्रमाण यह है कि पार्वत्य यमुना उपत्यका की पंचगायीं और गीठ पट्टी में अभी भी दुर्योधन की पूजा होती है।यमुना तट पर शक और यवन बस्तियों के बसने का भी उल्लेख है।काव्यमीमांसाकार ने 10वीं शताब्दी में लिखा है कि यमुना के उत्तरी अंचलों में जहाँ शक रहते हैं,वहाँ यम तुषार- कीर भी है।इस प्रकार यमुनोत्तरी धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रही।(तप्तकुण्ड व अन्य कुण्ड) यमुनोत्तरी पहुँचने पर यहाँ के मुख्य आकर्षण यहाँ के तप्तकुण्ड हैं।इनमें सबसे तप्त जलकुण्ड का स्रोत मन्दिर से लगभग 20फीट की दूरी पर है,केदारखण्ड वर्णित ब्रह्मकुण्ड अब इसका नाम सूर्यकुण्ड एवं तापक्रम लगभग195डिग्री फारनहाइट है,जो कि गढ़वाल के सभी तप्तकुण्ड में सबसे अधिक गरम है।इससे एक विशेष ध्वनि निकलती है,जिसे “ओम् ध्वनि”कहा जाता है।इस स्रोत में थोड़ा गहरा स्थान है।जिसमें आलू व चावल पोटली में डालने पर पक जाते हैं,हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की पार्वती घाटी में मणिकर्ण तीर्थ में स्थित ऐसे ही तप्तकुण्ड को “स्टीम कुकिंग”कहा जाता है।सूर्यकुण्ड के निकट दिव्यशिला है।जहाँ उष्ण जल नाली की सी ढलान लेकर निचले गौरीकुण्ड में जाता है,इस कुण्ड का निर्माण जमुनाबाई ने करवाया था,इसलिए इसे जमुनाबाई कुण्ड भी कहते है।इसे काफी लम्बा चौड़ा बनाया गया है,ताकि सूर्यकुण्ड का तप्तजल इसमें प्रसार पाकर कुछ ठण्डा हो जाय और यात्री स्नान कर सकें। गौरीकुण्ड के नीचे भी तप्तकुण्ड है।यमुनोत्तरी से 4मील ऊपर एक दुर्गम पहाड़ी पर सप्तर्षि कुण्ड की स्थिति बताई जाती है।विश्वास किया जाता है कि इस कुण्ड के किनारे सप्तॠषियों ने तप किया था।दुर्गम होने के कारण साधारण व्यक्ति यहाँ नहीं पहुँच सकता।स्थानीय लोगों का कहना है कि आजसे लगभग 60साल पहले विष्णुदत्त उनियाल वहाँ गए थे।लौटते समय उन्होंने वहाँ एक शिवलिंग देखा।जैसे ही वह उसे उठाने के लिए हुए वह गायब हो गया।

यमुनोत्तरी मंदिर के कपाट वैशाख माह की शुक्ल अक्षय तृतीया को खोले जाते और कार्तिक माह की यम द्वितीया को बंद कर दिए जाते हैं। यमुनोत्तरी मंदिर का अधिकांश हिस्सा सन १८८५ ईस्वी में गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने लकड़ी से बनवाया था, वर्तमान स्वरुप के मंदिर निर्माण का श्रेय गढ़वाल नरेश प्रताप शाह को है।
भूगर्भ से उत्पन्न ९० डिग्री तक गर्म पानी के जल का कुंड सूर्य-कुंड और पास ही ठन्डे पानी का कुंड गौरी कुंड यहाँ सबसे उल्लेखनीय स्थल हैं|

अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर मंदिर के कपाट खुलते हैं और दीपावली (अक्टूबर-नंवबर) के पर्व पर बद हो जाते हैं। यमुनोत्री मंदिर के आसपास के क्षेत्र में गर्मजल के अनेक सोते है। ये सोते अनेक कुंडों में गिरते हैं इन कुंडों में सबसे सुप्रसिद्ध कुंड सूर्यकुंड है। यह कुंड अपने उच्चतम तापमान के लिए विख्यात है। भक्तगण देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपडे की पोटली में चावल और आलू बांधकर इसी कुंड के गर्म जल में पकाते है। देवी को प्रसाद चढ़ाने के पश्चात इन्ही पकाये हुए चावलों को प्रसाद के रूप में भक्त जन अपने अपने घर ले जाते हैं। सूर्यकुंड के निकट ही एक शिला है जिसे दिव्य शिला कहते हैं। इस शिला को दिव्य ज्योति शिला भी कहते हैं। भक्तगण भगवती यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं।

ग्रीष्मकाल- दिन के समय सुहावना तथा रात्रिकाल के दौरान सर्द। न्यूनतम तापमान 6 डिग्री सें0 तथा अधिकतम 20 डिग्री सें.

शीतकाल- सिंतबर से नवंबर तक, दिन के समय सुहावना तथा रात के समय काफी अधिक सर्द। दिसंबर से मार्च तक समस्त भाग हिमाच्छादित तथा तापमान शून्य से भी कम

वेश भूषा- मई से जुलाई तक हल्के ऊनी। सितंबर से नवंबर तक भारी ऊनी

तीर्थयात्रा का समय- अप्रैल से नवंबर

भाषा- हिंदी, अंग्रेजी तथा गढवाली

आवास- यमुनोत्री तथा यात्रा मार्ग से समस्त प्रमुख स्थानो पर जीएमवीएन यात्री विश्राम गृह, निजी विश्राम गृह तथा धर्मशालाएं उपलब्ध हैं

वायुमार्ग- देहरादून स्थित जौलिग्रांट निकटतम हवाई अड्डा है। यह मार्ग संख्या 1 ए से होकर यमुनोत्री तक जाता है। कुल दूरी 210 किलोमीटर है

रेल- मार्ग संख्या 1ए से होते हुए अंतिम रेल स्टेशन ऋषिकेश से 231 किलोमीटर तथा देहरादनू से 185 किलो मीटर की दूरी पर हैं

सड़क मार्ग- ऋषिकेश से बस, कार अथवा टैक्सी द्वारा नरेंन्द्र नगर होते हुए यमुनोत्री के लिए 228 किलो मीटर की दूरी तय करते हुए फूलचट्टी तक पहुंचा जा सकता है। फूलचट्टी से मंदिर तक पहुंचने के लिए 8 किलो मीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती हैं
[26/04, 12:01 pm] Dr.Arvind Nautiyal: मार्ग संख्या 1 ए – हरिद्वार-देहरादूनः यमुनोत्री (फूलचट्टी से 8 किलो मीटर की पैदल चढ़ाई सहित 237 किलो मीटर) हरिद्वार (52 किमी), देहरादून (35 किमी), मसूरी (12 किमी), केम्प्टी फाल (17 किमी), यमुनापुल (12 किमी), नैनबाग (12 किमी), दामा (19 किमी), कुवा (12 किमी), नौगांव (9 किमी), बडकोट (9 किमी), गंगनाणी (15 किमी), कुथूर (3 किमी), पाल गाड (9 किमी), सयानी चट्टी (5 किमी), राणाचट्टी (3 किमी), हुनमानचट्टी (3 किमी), बनास (2 किमी), फूलचट्टी (3 किमी पैदल चढ़ाई), जानकी चट्टी (5 किमी पैदल चढ़ाई), यमुनोत्री

मार्ग संख्या 2 ए – हरिद्वार – ऋषिकेश- यमुनोत्री (फूलचट्टी से 8 किमी की पैदल चढ़ाई सहित 260 किमी) ऋषिकेश-यमुनोत्री (फूलचट्टी से 8 किमी की पैदल चढ़ाई सहित-236 किमी) हरिद्वार-(24 किमी), ऋषिकेश (16 किमी), नरेन्द्रनगर (45 किमी), चंबा (टिहैंरी गढवाल,17 किमी), दुबट्टा (40 किमी) धरासू (18 किमी), ब्रह्माखल (43 किमी), बारकोट बारकोट से यमुनोत्री (57 किमी), मार्ग संख्या 1

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