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महिला सशाक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग के अन्तर्गत बाल पलाश योजना का जिलाधिकारी डाॅ0वी0 षणमुगम व मुख्य विकास अधिकारी अभिषेक रूहेला द्वारा विकास भवन सभागार में आये बहुत सारे बच्चों को अंडा व केला खिलाकर शुभारम्भ किया गया। इस अवसर पर उन्होने बताया कि बाल पलाश योजना के अन्तर्गत...
बिषेश टिहरी - इतिहास की झलक पौराणिक काल - टिहरी स्थित भागीरथी, भिलंगना व घृत गंगा के संगम का गणेश प्रयाग नाम से स्कन्ध पुराण के केदारखण्ड में उल्लेख। सत्येश्वर महादेव (शिवलिंग) व लक्षमणकुण्ड (संगम का स्नान स्थल) शेष तीर्थ व धनुष तीर्थ आदि स्थानों का भी केदारखण्ड में उल्लेख। 17वीं सताब्दी- (1629-1646 के मध्य) पंवार बंशीय राजा महीपत शाह के सेनापति रिखोला लोदी का धुनारों के गांव टिहरी में आगमन और धुनारों को खेती के लिए कुछ जमीन देना। सन् 1803- नेपाल की गोरखा सेना का गढ़वाल पर आक्रमण। श्रीनगर गढ़वाल राजधानी पंवार वंश से गोरखों ने हथिया ली व खुड़बूड़ (देहरादून) के युद्ध में राजा प्रद्युम्न शाह को वीरगति। प्रद्युम्न शाह के नाबालिग पुत्र सुदर्शन शाह ने रियासत से पलायन कर दिया। जून, 1815- ईस्ट इण्डिया कम्पनी से युद्ध में गोरखा सेना की निर्णायक पराजय, सुदर्शन शाह ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से सहायता मांगी थी। जुलाई, 1815- सुदर्शन शाह अपनी पूर्वजों की राजधनी श्रीनगर गढ़वाल पहुंचा और पुनः वहां से रियासत संचालन की इच्छा प्रकट की। नवम्बर, 1815- ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने दून क्षेत्र व श्रीनगर गढ़वाल सहित अलकनन्दा के पूरब वाला क्षेत्र अपने शासन में मिला दिया और पश्चिम वाला क्षेत्र सुदर्शन शाह को शासन करने हेतु वापस सौंप दिया। 28 दिसम्बर, 1815- नई राजधनी की तलाश में सुदर्शन शाह टिहरी पहुंचे, रात्रि विश्राम किया। किंबदंती के अनुसार काल भैरव ने उनका घोड़ा रोक दिया था। यह भी किंबदंती है कि उनकी कुलदेवी राजराजेश्वरी ने सपने में आकर सुदर्शन शाह को इसी स्थान पर राजधानी बसाने को कहा था।टिहरी में गढ़वाल रियासत की राजधनी स्थापित। इस तरह पंवार वंशीय शासकों की राजधनी का सफर 9वीं शताब्दी में चांदपुर गढ़ से प्रारम्भ होकर देवल गढ़ व श्रीनगर गढ़वाल होते हुए टिहरी तक पहुंचा। जनवरी, 1816- टिहरी में राजकोष से 700 रुपये खर्च कर एक साथ 30 मकानों का निर्माण शुरू किया गया। कुछ तम्बू भी लगाये गये। 6 फरवरी, 1820- प्रसिद्ध ब्रिटिश पर्यटक मूर क्राफ्रट अपने दल के साथ टिहरी पहुंचा। 4 मार्च, 1820- सुदर्शन शाह को ईस्ट इण्डिया कम्पनी के गर्वनर जनरल ने गढ़वाल रियासर के राजा के रूप में मान्यता (स्थाई सनद) दी। 1828- सुदर्शन शाह द्वारा सभासार ग्रंथ की रचना की गयी। 1858- भागीरथी नदी पर पहली बार लकड़ी का पुल बनाया गया। 1859- अग्रेज ठेकेदार विल्सन ने चार हजार रुपये वार्षिक पर रियासत में जंगल कटान का ठेका लिया। तिथि ज्ञात नहीं- सुदर्शन शाह ने टिहरी में लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण करवाया। 4 मई, 1859- सुदर्शन शाह की मृत्यु। भवानी शाह गद्दी पर बैठे। तिथि ज्ञात नहीं (1846 से पहले)- प्रसिद्ध कुमाऊंनी कवि गुमानी पंत टिहरी पहुंचे और उन्होंने टिहरी पर उपलब्ध पहली कविता- ‘सुरगंग तटी.......’ की रचना की। 1859 (सुदर्शन शाह की मृत्यु के बाद)- राजकोष की लूट। कुछ राज कर्मचारी व खवास (उपपत्नी) लूट में शामिल। 1861- टिहरी से लगी पट्टी अठूर में नई भू-व्यवस्था लागू की गयी। 1864- भागीरथी घाटी के जंगलों का बड़े पैमाने पर कटान शुरू। विल्सन को दस हजार रुपये वार्षिक पर जंगल कटान का ठेका दिया गया। 1867- अठूर के किसान नेता बदरी सिंह असवाल को टिहरी में कैद किया गया। सितम्बर, 1868- टिहरी जेल में बदरी सिंह असवाल की मौत। टिहरी व अठूर पट्टी में हलचल मची। 1871- भवानी शाह की मृत्यु। राजकोष की फिर लूट हुई। प्रताप शाह गद्दी पर बैठे। 1876- टिहरी में पहला खैराती दवा खाना खुला। 1877- भिलंगना नदी पर कण्डल झूला पुल का निर्माण। टिहरी से प्रतापनगर पैदल मार्ग का निर्माण । 1881- रानीबाग में पुराना निरीक्षण भवन का निर्माण। फरवरी 1887- प्रताप की मृत्यु। कीर्तिनगर शाह के वयस्क होने तक राजामाता गुलेरिया ने शासन सम्भाला। 1892- टिहरी में बद्रीनाथ, केदारनाथ मन्दिरों का निर्माण राजमाता गुलेरिया ने करवाया। 17 मार्च 1892- कीर्ति शाह ने शासन सम्भाला। 20 जून 1897- टिहरी में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की हीरक जयंती के उपलक्ष्य में घण्टाघर का निर्माण शुरू। 1902- स्वामी रामतीर्थ का टिहरी आगमन। 1906- स्वामी रामतीर्थ टिहरी में भिलंगना नदी में जल समाधि। 25 अप्रैल 1913- कीर्ति शाह की मृत्यु। नरेन्द्र शाह गद्दी पर बैठे। 1917- रियासत के बजीर पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी ने नरेन्द्र हिन्दू लाॅ ग्रंथ की रचना की। 1920- टिहरी में कृषि बैंक की स्थापना। पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी ने गढ़वाल का इतिहास ग्रंथ लिखा। 1923- रियासत की प्रथम पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना। 1924- बाढ़ से भागीरथी पर बना लकड़ी का पुल बहा। 1938- टिहरी में रियासत का हाईकोर्ट बना। गंगा प्रसाद प्रथम जीफ जज नियुक्त किये गये। 1940- प्रताप कालेज इण्टरमीडिएट तक उच्चीकृत। 1940- ऋषिकेश-टिहरी सड़क निर्माण का कार्य पूरा। टिहरी तक गड़ियां चलनी शुरू। 1942- टिहरी में प्रथम कन्या पाठशाला की स्थापना। 1944- टिहरी जेल में श्रीदेव सुमन का बलिदान। 5 अक्टूबर 1946- मानवेन्द्र शाह कर राजतिलक। 1945-48- प्रजा मंडल के नेतृत्व में टिहरी जनक्रांति का केन्द्र बना। 14 जनवरी 1948- राजतंत्र का तख्ता पलट। नरेन्द्र शाह को भागीरथी पुल पर रोक कर वापस नरेन्द्र भेजा गया। जनता द्वारा चुनी गई सरकार का गठन। अगस्त 1949- टिहरी रियासत का संयुक्त प्रांत में विलय। 1953- टिहरी नगरपालिका के प्रथम चुनाव। डाॅ. महावीर प्रसाद गैरोला अध्यक्ष चुने गये। 1955- आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती का टिहरी आगमन। 20 मार्च 1963- राजमाता कालेज की स्थापना। तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ0 राधाकृष्णन टिहरी पहंुचे। 1963- टिहरी में बांध निर्माण की घोषणा। अक्टूबर 1968- स्वामी रामतीर्थ स्मारक का निर्माण। उद्घाटन तत्कालीन राज्यपाल डाॅ0 वी0गोपाला रेड्डी द्वारा किया गया। 1969- टिहरी में प्रथम डिग्री काॅलेज खुला। 1978- टिहरी बांध विरोधी संघर्ष समिति का गठन। वीरेन्द्र दत्त सकलानी अध्यक्ष बने। 29 जुलाई, 2005- टिहरी शहर में पानी घुसा, करीब सौ परिवारों को अंतिम रूप से शहर  छोड़ना पड़ा।  
28 दिसम्बर को पुरारी टिहरी शहर को जन्म दिन मनाते है, जो आज सिर्फ यादो में जिन्दा हें आज पुरानी टिहरी शहर को 204 साल हो गये। पुरानी टिहरी की यादे आज भी लौगो के दिलो मे तरो ताजा है ओर पुरानी टिहरी के क्षणो को याद करते हुये आज भी लोगो के आखो मे आंसू आ जाते है उन पलो को याद करते हुये लोग सहम से जाते हे कि इस झील के नीचे कभी पुरानी टिहरी भी हुआ करती थी वर्तमान समय मे पुरानी टिहरी शहर टिहरी बाॅंध की झील मे समा चुका हे जो टिहरी  चार धाम यात्रा का मुख्य केन्द्र था ओर इस शहर की विशेषता यह थीतीनो तरफ से नदियां होने के कारण इस षहर का नाम त्रिहरी पडा और इसके बाद यह टिहरी नाम से प्रसिद्ध हो गया इस टिहरी षहर का उल्लेख स्कन्दपुराण के केदारखण्ड के अध्याय 147 मे भी हे  था अब इस षहर की यादे सिर्फ इतिहास के पन्नो मे सिमट के रह गयी है                                                         ...
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