माँ जैसा प्यार मिलता है बच्चो को छात्रावास में

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टिहरी शायद ही ऐसा कहीं होता हो कि बच्चों को घर से दूर रहकर भी उन्हें मां जैसा प्यार मिले। लेकिन यह सच है, टिहरी जिले के प्रतापनगर के समीप सुजड़गाव में एक छात्रावास ऐसा भी है। जहां पर रह रही छात्राओं को मां जैसा प्यार मिलता है और उन्हें कभी अपने घर की याद भी नहीं आती।

आपको बता दें कि भारत सरकार ने देश के दूर-दराज क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग व अल्पसंख्यक समुदाय के बालिकाओं के लिए प्रारंभिक स्तर पर आवासीय विद्यालय (ठहरने की सुविधा सहित) खोलने के लिए कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना की शुरुआत की है।

इसी योजना के अंतर्गत टिहरी जिले में प्रताप नगर ब्लॉक के लम्बगांव के समीप सुजड़गांव में 50 छात्राओं के लिए आवासीय सुविधा हेतु कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय छात्रावास का निर्माण किया गया था।

वर्तमान समय में इस छात्रावास में लगभग 50 छात्राएं पढ़ रही हैं और इन छात्राओं को पढ़ाई के साथ साथ रहने खाने और तमाम तरह की सुविधाएं छात्रावास में दी जाती है।

जब इस छात्रावास की अध्यापिका से बात की तो छात्रावास की अध्यापिका अनीता का कहना है कि इन बच्चों का पूरा ध्यान अपने बच्चों की तरह रखना पड़ता है। इन बच्चियों के लिए सरकार द्वारा छात्रावास में सारी सुविधाएं दी जाती हैं। जिससे छात्रावास में रहकर अपने भविष्य को संवार सकें और इन्हें अपनी गरीबी का एहसास न हो, इसी के उद्देश्य से इनको छात्रावास में रहकर आत्मनिर्भर बनाया जाता है। जिससे इन्हें भविष्य में आत्मनिर्भर बन सकें और अपने पांव पर खड़े रहकर।

भावुक होते हुए अध्यापिका ने कहा हैं कि यह बच्चियां मुझे मां जैसा समझती हैं और ढेर सारा प्यार देती है। मुझे लगता ही नहीं है कि मैं अपने परिवार से दूर हूं। मैं इस छात्रावास को एक परिवार की तरह समझती हूं और मेरी हमेशा से ही कोशिश रहती है कि इन बच्चियों को किसी भी चीज की कमी महसूस न होने दूं।

यहां पर बच्चियों का जो मन करता है उनको यह अध्यापिका उपलब्ध करवाती हैं। साथ ही समय-समय पर यहां पर बच्चियों को कई तरह की क्रिएटिविटी की जाती है। अध्यापिका द्वारा छात्रावास में पढ़ रही बच्चियों का जन्मदिन भी धूमधाम से मनाया जाता है। स्कूल की छुट्टी होने के बाद जब यह छात्राएं छात्रावास में आती है तो खाना खाने के पश्चात एक साथ रहकर मनोरंजन करती हुई दिखाई देती हैं और आपस में सभी छात्राएं मेल मिलाप से रहती हैं।

जैसे एक मां का लगाव बच्चों से होता है वैसे ही यह लगाव अब इस अध्यापिका के बच्चों के प्रति हो गया है 50 बच्चों को मां जैसा प्यार देने वाली अध्यापिका का जीवन इन बच्चों तक सीमित है।

वही छात्रावास में पड़ रही छात्राओं का कहना है कि हमारी अध्यापिका हमें छात्रावास में किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं होने देती है। हम यहां पर अपने घर जैसे रहते हैं और हमारी अध्यापिका हमें मां जैसा प्यार करती है। हमें लगता ही नहीं है कि हम छात्रावास में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। जो सुविधाएं हमें शायद हमारे घर में नहीं मिल पाती, वह सारी सुविधाएं हमारी अध्यापिका हमें छात्रावास में रहकर दिलाती है।जिससे हमें अपनी घर की याद ना आए। कभी कबार अगर किसी छात्रा को अपने घर की याद आ भी जाती है, तो उसे दो-तीन दिनों के लिए उसके घर छोड़ दिया जाता है। लेकिन ज्यादातर छात्राओं को यहां पर किसी भी तरह की असुविधा से नहीं गुजरना पड़ता है। सभी यहां पर बहुत अच्छे से रहते हैं।

साथ ही छात्राओं का कहना है कि यहां पर हमें पढ़ाई, रहने-खाने के साथ-साथ कई तरह के खेलकूद भी सिखाए जाते हैं।

अध्यापिका अनिता ओर पूरे स्टाफ के द्वारा बच्चो के प्रति इतना प्यार को देखते हुए लगता है कि दुनिया यही है,ओर सेवाभाव भी यही है,

पर समाजसेवा करने वालो के लिए यह एक मिशाल है कि बच्चो के सेवा कैसी होती है इस अध्यापिका से सीखे,की वह सराकर के द्वारा दी जाने वाली को पूरे तनमन से बच्चो पर लगती है कि सामाजिक संस्थाये ऐसी है जो सिर्फ कमाने के लिए बनी होती है

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