एक्सकुलुसिव-बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता ने उठाये टिहरी डेम की लाइफ पर सवाल,

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टिहरी जिले के चंबा ब्लॉक के अंतर्गत जड़धार गांव निवासी बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता विजय जड़धारी ने टिहरी बांध परियोजना के लाइफ पर सवाल उठाते हुए कहा की टिहरी बांध की झील के लाइफ़ वैज्ञानिकों द्वारा 100 साल बताई गई है लेकिन जिस तरह से टिहरी झील में गाद भर रही है उससे टिहरी बांध की लाइफ 100 साल की वजह ना होकर 50 साल से भी कम हो जाएगी इसलिए सरकार को चाहिए टिहरी झील में जितना भी बालू पत्थर मिट्टी इकट्ठा हो रहा है उसकी निकासी होनी जरूरी है उसके लिए उत्तराखंड सरकार को स्थानीय बेरोजगार युवको को रेत बेचने के लिए परमिशन देनी चाहिए,

विजय जड़धारी ने कहा कि जब टिहरी डेम बनाया जा रहा था उस समय सब यही कह रहे थें की झील के आसपास नमी ओर मॉश्चर होगा ओर बारिश होगी,लेकिन हुआ ठीक उसका उल्टा बिल्कुल,जबकि आप देखे की नरेंद्र नगर देहरादून कोटद्वार तराई की तरह तो बारिश हो रही है लेकिन आप गंगा घाटी गंगा घाटी की तरफ आप चलोगे तो यहां सबसे ज्यादा सूखा पड़ रहा है

अगर हम बात करें 15-20 सालों की तो तब से यहां पर बारिश बहुत कम हुई है टिहरी बांध बनने से इसका असर ग्लेशियर पर क्या पड़ रहा है इसके बहुत बड़े अध्ययन हुए ही नहीं हैं जबकि इस पर अध्ययन हो जाने चाहिए थे,

अब जहां तक टिहरी बांध की बात करें तो वह खतरे की घंटी तो है चाहे वह आप सुरक्षा को लेकर कहें चाहे पर्यावरण की दृष्टि से कहें चाहे भूकंप की दृष्टि से कहें क्योंकि यह बहुत ही सेंसिटिव एरिया है

उत्तराखंड का जो टिहरी जिला है वह जॉन 4 में आता है टिहरी में जो भूगर्भीय अध्ययन हुए है उसके हिसाब से अभी तो ठीक है बिजली मिल रहीं है लेकिन कितने साल तक मिलेगी इसके बारे में टिहरी बांध परियोजना के अधिकारियों ने जनता को अभी तक कुछ नही बताया,जड़धारी ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि क्या उ 100 साल तक इससे बिजली मिलेगी ,जिस तरह से टिहरी झील में गाद आ रही है क्या उस हिसाब से बिजली मिल पाएगी जिस हिसाब से झील में गाद रेत मिट्टी आ रही है, गंगोत्री से और टिहरी बांध तक गाद पहुंच रहा है उससे टिहरी बांध की झील का दायरा पीछे-पीछे तक तरफ बढ़ रहा है यानी गंगोत्री की तरफ जा रहा है साथ ही झील में भारी मात्रा में मिट्टी रेत आदि गाद आ रही है

टिहरी झील में आ रही मिट्टी रेत गाद को रोकने के लिए टिहरी बांध परियोजना के द्वारा कोई भी तकनीकी या उपाय नहीं किए गए है, टिहरी बांध की झील ने एक ना एक दिन गाद ऊपर तक भर ना ही भरना है उसके बाद क्या होगा कहां से बिजली मिलेगी जब टरबाइन भी बंद हो जाएगी तो तब कैसे बिजली मिलेगी

भविष्य के लिए असल में बिजली का प्लान करना चाहिए छोटी छोटी पनबिजली यहां बनानी चाहिए

पर्यावरण विद्द स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा बार-बार एक ही बात करते थे धार एच पानी पानी ढाल पर डाला बिजली बनावा खाला खाला यानी हमारी प्लानिंग यह होनी चाहिए धार के ऊपर पानी लाकर नीचे की तरफ सिचाई के लिए पानी और ढलान पर पेड़ लगाना चाहिए और गधेरों पर बिजली का उत्पादन होना चाहिए,

छोटी छोटी नदियों में बिजली बनाएंगे इससे हमारे पहाड़ का भला हो जाएगा और कहना है योजनाएं बनाई जानी चाहिए जिससे आम आदमी संचालित कर सके इससे पहले भी उत्तराखंड सरकार छोटी-छोटी योजनाओं को जो एक एक दो दो मेगावाट की हो उनको बनाए और संचालित कराएं लेकिन इस और सरकार कुछ नहीं कर पा रही है

बड़े-बड़े बांधों को बनाने का विनाश होने का प्रमाण भी हमने सामने देखा है जैसे केदारनाथ त्रासदी देखी उसके बाद चमोली के जोशीमठ, तपोवन रैणी गांव की त्रासदी देखी है क्योंकि इतनी ऊंचाई पर जाकर इतने बड़े बड़े प्रोजेक्ट टनल बना रहे हैं इसका जो पूरा इकोलॉजी है सिस्टम है पूरा गड़बड़ हुआ है हम इस बात को मानते हैं कि पूरी धरती का क्लाइमेट चेंज हो गया है कभी भी बादल फट सकता है बादल फटने से नुकसान हो रहा है,जहाँ जहां हमने गलत तरीके से निर्माण किया हो

जड़धार गांव का जो जंगल है 6 से 8 किलो वर्ग मीटर तक यह जंगल फैला है, 2015 में जब इस जंगल में एक बादल फटा था उस समय भारी मात्रा में गाव के बगल में पानी आया लेकिन पुरानी तकनीकी के वजह से यह पानी गांव तक पहुंचने तक सामान्य हो गया था अगर जंगल में यह पहाड़ों में खूब पेड़ लगाए जाए तो इस तरह की घटनाएं नहीं होंगी और ना ही आपदा आएगी क्योंकि जहां-जहां पेड़ ज्यादा संख्या में लगे रहते हैं वहां पर इस तरह की घटनाएं कम होती हैं आज के विकास के कारण क्लाउट भ्रष्ट हो रहा है क्लाउड भ्रष्ट से बचने के कोई साधन हमारे पास कोई तकनीकी नहीं है इससे बचने के लिए हमारी पहले से कोई तैयारी नहीं है और ना ही हम उस तरह से कोई निर्माण पहले से ही करते हैं कि जिस से हम सावधान रह सकें,

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