दीपावली के दिन जन्म लेने और मृत्यु प्राप्त करने वाले महान संत स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति खण्डित, स्मारक बदहाल, टिहरी नगर पालिका और टीएचडीसी बनी लापरवाह

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महान संत स्वामी राम तीर्थ जी की तस्वीर, व अंतिम वाणी ,तथा,खण्डित मूर्तिआज से 122 साल पुर्व दीपावली के दिन प्रसिद्ध संत स्वामी राम तीर्थ ने भिंलगना नदी के सिमलासू तट में ली थी जल समाधि ,सन्त स्वामी राम तीर्थ का जन्म दीपावली के दिन 22 अक्टूबर 1873 को हुआ और दीपावली के दिन 17 अक्टूबर 1906 को टिहरी के सिमलासु तट पर भागीरथी के संगम में 33 साल की उम्र में जल समाधि ली,ओर आज संत स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति व स्मारक कोटी कॉलोनी में बिना देख रेख के कारण बदहाल अवस्था मे पड़ा है, ओर सामाजिक संगठनों ने
टिहरी नगर पालिका और टीएचडीसी पर लापरवाही का आरोप लगाया कि इन्होंने इस धरोहर के सौंदर्यकरण करने की जहमत तक नही उठाई,

नगरपालिका टिहरी ओर टीएचडीसी की लापरवाही के कारण कोटि कालोनी में रखी स्वामी राम तीर्थ की मूर्ति ओर स्मारक टूटी फूटी अवस्था मे पड़ी है किसी ने नही ली सुध,जब से यह मूर्ति ओर स्मारक कोटि कालोनी में स्थापित किया गया तब से लेकर आज तक इसकी देखरेख नही की गई जिससे किसी असमाजिक तत्वों द्वारा मूर्ति ओर स्मारक को नुकसान पहुंचाया गया है,

आपको बता दे कि प्रसिद्ध संत स्वामी राम तीर्थ का पुरानी टिहरी से बहुत लगाव रहा जैसे ही पुरानी टिहरी में टिहरी बाध की झील भरने के बाद स्वामी राम तीर्थ की मूर्ति ओर स्मारक को कोटी कोलानी में लाया गया ताकि यह धरोहर सुरक्षित रहे और टिहरी में आने वाले देश विदेशों से आने वाले पर्यटकों को संत स्वामी राम तीर्थ के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है, लेकिन टिहरी नगर पालिका ओर टीएचडीसी की लापरवाही के चलते सन्त स्वामी राम तीर्थ की मूर्ति का अपमान हो रहा है,

स्वामी रामतीर्थ के मूर्ति को ठीक करने के लिए नगर पालिका और टीएसडीसी ने अब तक कोई पहल नहीं की

कोन थे स्वामी राम तीर्थ

यह वह संत रहे जिनका जन्म दीपावली के दिन हुआ ओर दीपावली के दिन ही जल समाधि ली सन्त स्वामी राम तीर्थ ने जल समाधि लेते समय मृत्यु के नाम एक सन्देश लिखकर गंगा में जलसमाधि लेते हुए कहा

“मौत तुम इस नश्वर देह को खुशी से ले लो मुझे इसकी परवाह नही में किसी भी शरीर मे प्रवेश कर सकता हु पर्वतीय क्षेत्र में किसी भी जड़ व चेतन में स्वच्छदता पूर्वक विचरण करता रहूंगा ताकि कोई भी मुझे पा न सके मेरे पास अपना कुछ भी नही है” ॐ ॐ ॐ

स्वामी राम तीर्थ का जन्म 22 अक्टूबर 1873 में दीपावली के दिन पजाब गुजरावाला जिले मुरारीवाला ग्राम में हुआ था इनके बचपन का नाम तीर्थराम था विद्यार्थी जीवन में इन्होंने अनेक कष्टों का सामना किया भूख और आर्थिक बदहाली के बीच भी उन्होंने अपनी माध्यमिक और फिर उच्च शिक्षा पूरी की पिता ने बाल्यावस्था में ही उनका विवाह भी कर दिया था। वे उच्च शिक्षा के लिए लाहौर चले गए सन् 1891 में पंजाब विश्वविद्यालय की बी० ए० परीक्षा में प्रान्त भर में सर्वप्रथम आये। इसके लिए इन्हें 90 रुपये मासिक की छात्रवृत्ति भी मिली। अपने अत्यंत प्रिय विषय गणित में सर्वोच्च अंकों से एम० ए० उत्तीर्ण कर वे उसी कालेज में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हो गए। वे अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा निर्धन छात्रों के अध्ययन के लिये दे देते थे।लाहौर में ही उन्हें स्वामी विवेकानन्द के प्रवचन सुनने तथा सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिला। ईन पर दो महात्माओं का विशेष प्रभाव पड़ा दृ द्वारकापीठ के तत्कालीन शंकराचार्य और स्वामी विवेकानन्द।स्वामी रामतीर्थ ने सभी बन्धनों से मुक्त होकर एक संन्यासी के रूप में घोर तपस्या की।

प्रवास के समय उनकी भेंट टिहरी रियासत के तत्कालीन नरेश कीर्तिशाह से हुई। टिहरी नरेश पहले घोर अनीश्वरवादी थे। स्वामी रामतीर्थ के सम्पर्क में आकर वे भी पूर्ण आस्तिक हो गये। महाराजा ने स्वामी रामतीर्थ के जापान में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में जाने की व्यवस्था की। वे जापान से अमरीका तथा मिस्र भी गये।

विदेश यात्रा में उन्होंने भारतीय संस्कृति का उद्घोष किया तथा विदेश से लौटकर भारत में भी अनेक स्थानों पर प्रवचन दिये। उनके व्यावहारिक वेदान्त पर विद्वानों ने सर्वत्र चर्चा की।

वर्ष 1901 में प्रो॰ तीर्थराम ने लाहौर से अन्तिम विदा लेकर परिजनों सहित हिमालय की ओर प्रस्थान किया। अलकनन्दा व भागीरथी के पवित्र संगम पर पहूँचकर उन्होंने पैदल मार्ग से

गंगोत्री जाने का मन बनाया। टिहरी के समीप पहुँचकर नगर में प्रवेश करने की बजाय वे कोटी ग्राम में शाल्माली वृक्ष के नीचे ठहर गये। ग्रीष्मकाल होने के कारण उन्हें यह स्थान सुविधाजनक लगा। मध्यरात्रि में प्रो॰ तीर्थराम को आत्म.साक्षात्कार हुआ। उनके मन के सभी भ्रम और संशय मिट गये। उन्होंने स्वयं को ईश्वरीय कार्य के लिए समर्पित कर दिया और वह प्रो॰ तीर्थराम से रामतीर्थ हो गये।

स्वामी रामतीर्थ ने जापान में लगभग एक मास और अमेरिका में लगभग दो वर्ष तक प्रवास किया। वे जहाँ.जहाँ पहुँचेए लोगों ने उनका एक सन्त के रूप में स्वागत किया। उनके व्यक्तित्व में चुम्बकीय आकर्षण थाए जो भी उन्हें देखता वह अपने अन्दर एक शान्तिमूलक चेतना का अनुभव करता। दोनों देशों में राम ने एक ही संदेश दिया.श्आप लोग देश और ज्ञान के लिये सहर्ष प्राणों का उत्सर्ग कर सकते हैं। यह वेदान्त के अनुकूल है। पर आप जिन सुख साधनों पर भरोसा करते हैं उसी अनुपात में इच्छाएँ बढ़ती हैं। शाश्वत शान्ति का एकमात्र उपाय है आत्मज्ञान। अपने आप को पहचानोए तुम स्वयं ईश्वर हो।

सन् 1904 में स्वदेश लौटने पर लोगों ने राम से अपना एक समाज खोलने का आग्रह किया। राम ने बाँहें फैलाकर कहाए भारत में जितनी सभा समाजें हैंए सब राम की अपनी हैं। राम मतैक्य के लिए हैंए मतभेद के लिए नहींय देश को इस समय आवश्यकता है एकता और संगठन कीए राष्ट्रधर्म और विज्ञान साधना कीए संयम और ब्रह्मचर्य की।

टिहरी गढ़वाल से उन्हें अगाध स्नेह था। वे पुन यहाँ लौटकर आये। टिहरी उनकी आध्यात्मिक प्रेरणास्थली थी और वही उनकी मोक्षस्थली भी बनी,17 अक्टूबर 1906 की दीपावली के दिन उन्होंने मृत्यु के नाम एक सन्देश लिखकर गंगा में जलसमाधि ले ली।

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