टिहरी राजशाही के जमाने में हस्तलिखित दुर्लभ दस्तवेज पांडुलिपि सड़ने की कगार पर,

0
319

कहते हैं पुस्तकें मनुष्य की सच्ची दोस्त होती हैं। किताबी ज्ञान का लाभ जीवन मे मिले,लेकिन राजशाही के जमाने से 100 साल पुरानी दस्तवेज पांडुलिपि को सरकार सुरक्षित नही रख पा रही है,यह एक कर्मचारी के भरोसे सुमन पुस्तकालय नई टिहरी चल रहा है, ओर देखरेख के अभाव में राजशाही के जमाने के दुर्लभ दस्तवेज सड़ने की कगार पर है

तीन नदियों के बीच मे राजा सुदर्शन शाह ने 18 अक्टूबर 1815 में पुरानी टिहरी शहर को बसाया था, पुरानी टिहरी में लाइब्रेरी की स्थापना 1923 में नरेन्द्र शाह ने की थी, जिसकी देखरेख राज परिवार के लोग करते थे. लेकिन, राजशाही शासन समाप्त होने पर ये लाइब्रेरी सरकार के शिक्षा विभाग को सौंप दी गई. उसी दौरान इसका नाम सुमन लाइब्रेरी रखा गया. पुरानी टिहरी में ये श्रीदेव सुमन लाइब्रेरी, राजमाता स्कूल और कान्वेंट स्कूल घंटाघर के पास बना हुआ था, जहां पर हर समय पढ़ने वालों की भीड़ लगी रहती थी

टिहरी बांध की झील बनने के बाद श्रीदेव सुमन लाईब्रेरी को साल 2000 में नई टिहरी के बौराड़ी में शिफ्ट कर दिया गया. लाइब्रेरी की देखरेख करने वाले एक मात्र कर्मचारी विशन सिंह रांगड़ ने बताया यह सुमन लाइब्रेरी राजाओं के जमाने की है. इसमें 35 से 40 हजार पुस्तके है इनमे राजाओं के हस्तलिखित पाण्डुलिपि दस्तावेज भी है जिन्हें राजा महाराजाओं ने खुद लिखा है लेकिन यहां पर कर्मचारियों के अभाव के कारण इन दुर्लभ पुस्तकों का संरक्षण नहीं हो पा रहा है इनमें ऐसे ऐसे दुर्लभ हस्त लिखित पुस्तकें हैं जो आज दुनिया के किसी भी पुस्तकालय में देखने को नहीं मिलते है जो सिर्फ यहां पर रखे गए हैं ,

टिहरी राजशाही के 7 पीढ़ी की जन्मपत्री
टिहरी राजशाही के 7 पीढ़ी की जन्मपत्री

वही 20 से अधिक देशो में हिन्दुराष्ट्र के सम्बंध में अपना व्यख्यान देने वाले नई टिहरी में स्थित राजकीय इंटर कालेज के प्रवक्ता शिक्षाविद सुशील कोटनाला जिन्हें एक दर्जन से अधिक बोली भाषाओं का ज्ञान है इन्होंने राजशाही के जमाने की आश्चर्यजनक दुर्लभ पांडुलिपि व राजाओं के द्वारा हस्तलिखित पुस्तकों को देखा  जो लगभग 100 साल से अधिक पुराने हैं कह इस दुर्लभ चीजो को बचाने के लिए समाज के सभी लोगो को आगे आने की जरूरत हें जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे पूर्वजों के बारे में जान सकेगी,साथ ही इस पुस्तकालय  में राजवैध द्वारा लिखी  100 साल पुराने दुर्लभ भेषज हस्तलिखित पांडुलिपिया है  जिसके अध्ययन से कई असाध्य बीमारियों का फार्मूला निकालकर बीमारियों का इलाज किया जा सकता है,

लेकिन ऐसे दुर्लभ रिकॉर्ड को संभालने के लिये सरकार की तरफ से कोई पहल नही की गई,जिस कारण आज यह दुर्लभ रिकॉर्ड सड़ने लग गए है,कई रिकॉर्ड को रख रखाव के अभाव में चूहों ने काट दिए,

पुस्तकालय की हालत को देख कर शिक्षाविद सुशील कोटनाला का मन व्यथीत हों गया,साथ ही पुरानी टिहरी के इतिहास के बारे में बताया कि पुरानी टिहरी 18 दिसंबर 1815 को राजा महाराजा सुदर्शन शाह ने बसाया था  शुरू में यह पर धुनारो की पांच छह लोगों की बस्ती थी जो भागीरथी नदी को पार करवाते थे और और भागीरथी, भिलंगना, घृतगंगा के संगम पर पुरानी टिहरी बसाया गया राजा सुदर्शन शाह की 6 पीढ़ियों ने  1950 तक यहां पर राज किया महाराजा सुदर्शन शाह के पुत्र भवानी शाह हुए और भवानी शाह के पुत्र  प्रताप शाह हुए जिनके द्वारा प्रतापनगर बसाया गया,प्रताप शाह के पुत्र कीर्ति शाह हुए,जिन्होंने कीर्तिनगर बसाया, कीर्ति शाह के पुत्र नरेंद्र शाह हुए, जिन्होंने नरेंद्रनगर बसाया, और सातवीं पीढ़ी में  परमार वंश के राजा मानवेंद्र शाह हुए ओर मानवेंद्र शाह का 1946 में राज्यभिषेख  किया गया और 1949 में प्रजामंडल के आंदोलन के फल स्वरुप टिहरी राजशाही स्वतंत्र हुआ और टिहरी राजशाही का भारत में विलय हो गया उस समय यह उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, सन 1960 में उत्तरकाशी जिला टिहरी का ही हिस्सा था जो अलग जिला बना,

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here